Thursday 10 January 2013

जनुन था उनमें
काबिले तारिफ़
उंचे धोरे उंचे पर्वत
ये भी ना रोक पायी
उन पैनी नजरों को
वो तपती रेत
वो जमा हुआ पठार
धुल भरी आंधीयां
वो तुफ़ा ……
सब बेअसर
दिलो-दिमाग में
एक ही निशान
वतन -तिरंगा ……।
वो गिद्ड़ो की बेसुरी आवाज ………अधुरी

भगत
जब तक ह्मारी
जुबान ये बोलेगी
ये मेरा है ये तेरा है
इस वतन का उत्थान
नही हो सकता है …
जिस दिन ये बोलेगी
की ये वतन हमारा है …
चन्द ही पल लगेगें देश की
सुरत बदलने में …………॥

जय हिन्द …………जय भारत
सिमेट कर लाखों अरमान
सोयी थी मेरी बहिना
उस रात को …खुद से बोली
कल बदल दुंगी राह इस देश की
मेरे कंधों पे है वजन इस वतन का
कोई ना लड़ेगा अब
जिंद्गगी ओर मौत के दरमियान
यही धुन सोने भी ना दे रही थी
मेरी बहिना को
कमरे की खिड़की से हुआ उजाला
खुद से बोली आज तो देर हो गई
पता ही नही लगा की ये सवेर हो गई
मां बोली बेटी खाना तो खा के जाओ
बहिना बोली ना देर हो गई
बेटी साथ लेती जाओ …माँ तो माँ होती है
जब तक ना पहुची उस विधा के मन्दिर तक चैन ना था
जो सीखना था बाकी वो सीखा …
पता ही ना लगा ये दिन कब ढल गया …
अब तो कुछ ही दिन की बात है …
कुछ ही दिन ओर आना है मन्दिर मे
लेकर बस्ता चल दी आशियाने की ओर
उस तो इन्सानियत पता थी …
सबसे बड़ी सहेली भी थी …
उसने किया भरोशा अपनी सखी पे
सखी ही दगा दे गयी …
जो एक सपना थी खुद
एक रोशनी की किरन थी
सबकी जुबान थी आज
खुद ही बेजुबान होके रह गयी ……
जिंद्गगी ओर मौत के दरमियान
खुद आ गयी ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
मेरी प्यारी बहिना ………

भगत सिंह बेनीवाल
कितने मुखोटे
लगाकर घुमते है इंसान
इस जहां में
ये सुना ही था मेरी बहिन ने
उसे मालुम ना था की
ये साया मेरे वतन पे भी है
जहां ओर वतन मे फर्क
ना समझ ना पायी ……
ओर हालात आपसे
छुपे नही है
कसुर क्या था
मेरी बहिन का
इंसानियत पे भरोसा है
गुनाह ……
मेरे हाथो में बेड़ीयां तो नही है

,,,,,,,,,,,जय हिन्द

भगत सिंह बेनीवाल
ना सता चाहते है हम
ना जेहाद चाहते है हम
इक इंसान चाहते है हम
इक बहिन के लिये इंसाफ
चाहते है हम
ना बंगला ना गाड़ी चाहते हम
इस देश की हर सड़क पर रोशनी
चाहते है हम
वतन की आबरु चाहते है हम
ना प्यार ना वफ़ा चाहते है हम
इक खुशहाल भारत चाहते है हम

जय हिन्द ……
भगत सिंह बेनीवाल