जनुन था उनमें
काबिले तारिफ़
उंचे धोरे उंचे पर्वत
ये भी ना रोक पायी
उन पैनी नजरों को
वो तपती रेत
वो जमा हुआ पठार
धुल भरी आंधीयां
वो तुफ़ा ……
सब बेअसर
दिलो-दिमाग में
एक ही निशान
वतन -तिरंगा ……।
वो गिद्ड़ो की बेसुरी आवाज ………अधुरी
भगत
काबिले तारिफ़
उंचे धोरे उंचे पर्वत
ये भी ना रोक पायी
उन पैनी नजरों को
वो तपती रेत
वो जमा हुआ पठार
धुल भरी आंधीयां
वो तुफ़ा ……
सब बेअसर
दिलो-दिमाग में
एक ही निशान
वतन -तिरंगा ……।
वो गिद्ड़ो की बेसुरी आवाज ………अधुरी
भगत